हरिवंशराय बच्चन के महाकाव्य "मधुशाला" की कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं, जो मुझे बहुत पसंद हैं। राष्ट्र-कवी 'बच्चन', ने मधुशाला की समानता इस जगत के साथ, और मधु अथवा हाला की जीवन के सफलताओं अथवा मोक्ष के साथ कर, मनुष्य के जीवन से जुड़े सभी सन्दर्भों का दार्शनिक वर्णन किया है।
"लिखी भाग्य में जितनी बस उतनी ही पाएगा हाला,
लिखा भाग्य में जैसा बस वैसा ही पाएगा प्याला,
लाख पटक तू हाथ पाँव, पर इससे कब कुछ होने का,
लिखी भाग्य में जो तेरे बस वही मिलेगी मधुशाला"।
"अपने युग में सबको अनुपम ज्ञात हुई अपनी हाला,
अपने युग में सबको अदभुत ज्ञात हुआ अपना प्याला,
फिर भी वृद्धों से जब पूछा एक यही उत्तर पाया,
-अब न रहे वे पीनेवाले, अब न रही वह मधुशाला!"।
अमिताभ बच्चन के स्वर में 'मधुशाला' की कुछ पंक्तियाँ इस विशेष प्रस्तुति में:-
http://www.youtube.com/watch?v=FO_2Ypeq6KM
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